MANOHAR LAL - An accidental cm
राजनीती में तस्वीरें बदलती रहती है और आसान चीज भी नहीं है लोग सालो गुजार देते है तब जाकर कहीं एक मुकाम मिलता है और वो मुकाम पाना आसान नहीं होता बहुत कुछ खोना पड़ता है और कई त्याग करने पड़ते है। लेकिन इसी राजनीती में कई ऐसे लोग भी होते है जो राजनीती में ज्यादा लाइम लाइट में नहीं रहते लेकिन फिर भी एक दिन एक बड़े औदे पर पहुँच जाते है जो किसी ने सोचा भी नहीं होता है....... अभी मन में ख्याल आ गया होगा यह बात शायद भारत के प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह की बात हो रही है जिन्हे एक्सीडेंटल पीएम कहा जाता है......... लेकिन एक्सीडेंटल सी एम का नाम जब सामने आता है तो बात कर लेते है हरियाणा के मौजूदा मुख्यमंत्री मनोहर लाल का जो अभी तो हरियाणा के सीएम की दूसरी पारी की शुरुआत कर चुके है।
हरियाणा की राजनीती में टेंडर पॉइंट था साल 2014 में जब विधानसभा चुनावों में पहली बार पूर्ण बहुमत से बीजेपी की सरकार बनी और इस सरकार को दूसरी बार भी मौका दिया प्रदेश की जनता ने लेकिन बहुमत मिली लेकिन फिर भी सत्ता पर काबिज रहने के लिए गठबंधन करना पड़ा जननायक जनता पार्टी के साथ करना पड़ा। लेकिन किसमत के धनी कहें हालाँकि शुरुआत से ही सीएम मनोहर लाल के नाम पर ही पूरा चुनावी कैंपेन मनोहर लाल के नाम पर ही लड़ा लेकिन चुनावी नतीजों के बाद कश्मकश बनी रही थी क्यूंकि गठबंधन में बहुत कुछ बिन मर्जी करना पड़ता है इसलिए अंत तक सरकार बनने का ड्रामा चलता रहा।लेकिनपर अमित शाह " डा चाणक्य " कहे जाने वाले ने आखिरकार ने मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाया मनोहर लाल और प्रदेश में सरकार बनी मनो 2.0 .
मनोहर लाल आर आर एस प्रचारक रह चुके है उन्होंने कभी शादी नहीं की हालाँकि उनके परिवारवालों ने कहा कई अच्छे रिश्ते भी आये लेकिन शादी नहीं की। मनोहर लाल अपने पांच भाईयो में सबसे बड़े था उनके पिता साल 1947 भारत पाकिस्तान बंटवारे बाद भारत आ गए और क्यूंकि गरीबी थी इसलिए मजदूरी करने लगे मजदूरी के पैसों से जमीन खरीदी और खेती करने लगे। और मनोहर लाल ने भी खेती की और सीएम बनने से पहले तक खेती करते रहे। दरअसल हरियाणा में एक चलन कहे या पसंद कई लोग अपने गांव का नाम अपने नाम के पीछे लगाते है ठीक उसी तरह मनोहर लाल ने भी मुख्यमंत्री बनते हुए अपने नाम के पीछे से खट्टर ना लगाने का फैसला लिया और आग्रह किया की उन्हें मनोहर लाल के नाम से बुलाया जाये। मनोहर लाल 1974 में दिल्ली क रानी बाग़ में कपड़ो का बिज़नस किया।साल 1994 में हरियाणा बीजेपी के प्रदेश संघटन मंत्री बने क्यूंकि वो आरआरएस के सदस्य थे और इमरजेंसी के दौरान राजनीति में सक्रीय हुए।मनोहर लाल ने बंसीलाल की पार्टी हरियाणा विकास पार्टी में रहकर चुनाव लड़े। मनोहर लाल को जम्मू कश्मीर में 2002 में पार्टी के प्रभारी बनाया। वहीँ उसके बाद मनोहर लाल को लोकसभा चुनाव में चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया गया।
मनोहर लाल को राजनीति विरासत में नहीं मिली लेकिन उनकी मेहनत रंग लाई। क्यूंकि आरएसएस बीजेपी का मूल संघठन इसलिए कई आर एस एस सम्बन्ध रखने वाले व्यक्ति बीजेपी के बड़े मंत्री है। इसलिए यह मौका मनोहर लाल को भी मिला और वो सत्ता पर काबिज हुए। मनोहर लाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबियों में से एक है। मनोहर लाल आज हरियाणा के राजनेताओं में जाना पहचाना चेहरा बन गए है,और मुख्यमंत्री के तौर पर पहली पारी में सफल हुए लेकिन अपने मंत्रिमंडल में बैठे मंत्रियो से तालमेल नहीं बिठा पाए जिसका खामियाजा दूसरी पारी में भुगतना पड़ा क्यूंकि जहाँ हरियाणा में 90 सीटों में से 75 पार का नारा दिया था लकिन 40 सीटें जीती। मतलब जीत तो दर्ज की लेकिन वो जीत नहीं रही क्यूंकि गठबंधन की सरकार बनी।
आज के समय में मनोहर लाल काफी प्रभावी मुख्यमंत्री के तौर पर उबरे है क्यूंकि उन्होंने प्रदेश के हित के लिए कई नई योजनाएं लाये जोकि सभी वर्गो के लिए था लेकिन जबाबदेही में मनोहर लाल कमजोर नज़र आते है।
हरियाणा के चुनावो में जात पात हमेशा ही मायने रहा है लेकिन मुख्यमंत्री मनोहर लाल नॉन जाट सीएम बने लेकिन पहली पारी में काफी चुनौतियाँ भी झेलनी पड़ी जहाँ उनसे इस्तीफे भी माँगा गया....... वो चुनौतियां थी जाट आरक्षण के लिए किया गया बड़ा आंदोलन जिसमें कई जाने गई ,आगजनी हुई कई सवाल उठे मनोहर सरकार पर क्यूंकि उस समय कानून व्यवस्था संभाल नहीं पायी डर था कि कहीं जाटों का विश्वास न खो दे और हालाँकि मंत्रिमंडल में जाट नेताओं ने माहौल को सँभालने की कोशिश की क्यूंकि इन नेताओं पर था जाटो को आरक्षण दिलाना लेकिन विश्वास खोया और चुनावो में हारे भी। दूसरी चुनौती रही डेरा सच्चा सौदा गुरमीत राम रहीम को सजा मिलने के बाद पंचकूला में हुई हिंसा जिसके लिए सरकार की निंदा हुई और अभी भी हाईकोर्ट में मामला चल रहा है जहाँ मनोहर सरकार पर सवाल उठे की कैसे तीन दिनों तक राम रहीम को मिलने वाली सजा से पहले हजारो की संख्या में डेरा प्रेमी इक्कठे हुए ? जिस कारण वहां पर आगजनी हुई लोगो में दहशत का माहौल में रहे। देखने वाली बात यह भी थी की डेरे के वोट्स भी बेहद मायने रहे है और उस वक़्त भी कानून व्यवस्था नहीं सँभालने पाए सवाल फिर उठे सरकार पर।
विपक्षी पार्टियां उन्हें ईमानदार मुख्यमंत्री तो कहते है लेकिन अपने मंत्रियो की वजह से उनपर आरोप भी लगे। कभी उनके खुद के मंत्री भी अंदुरनी तौर पर उनसे नाराज नजर आये लेकिन हाई कमान से बेहतर तालमेल होने के कारण उनकी कही हुई बाते मानी गयी। आज अपनी दूसरी पारी में मनोहर लाल अपना कार्यकाल निभा रहे है लेकिन यह इतना आसान नहीं है क्यूंकि प्रदेश में बीजेपी के गिरते ग्राफ को ऊपर करना उनके लिए चुनौती है जिसके लिए लोगो के बीच में रहना होगा वहीँ गठबंधन की सरकार है इसलिए जो भी फैसले लेने है उसके लिए अपने सहयोगी दल का विश्वास पाना क्यूंकि पार्टियों की अपनी अपनी अलग अलग विचारधारा होती है। वहीँ बीजेपी के संघठन को ही मजबूत करना भी एक चैलेंज रहेगी।
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